Everything about Hindi poetry
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कैद जहाँ मैं हूँ, की जाए कैद वहीं पर Hindi poetry मधुशाला।।८८।
हानि बता, जग, तेरी क्या है, व्यर्थ मुझे बदनाम न कर,
तारक-मणि-मंडित चादर दे मोल धरा लेती हाला,
धर्मग्रन्थ सब जला चुकी है, जिसके अंतर की ज्वाला,
इतरा लें सब पात्र न जब तक, आगे आता है प्याला,
शेख, कहाँ तुलना हो सकती मस्जिद की मदिरालय से
हो सकते कल कर जड़ जिनसे फिर फिर आज उठा प्याला,
कल? कल पर विश्वास किया कब करता है पीनेवाला
दुतकारा मस्जिद ने मुझको कहकर है पीनेवाला,
एक बरस में, एक बार ही जगती होली की ज्वाला,
किरण किरण में जो छलकाती जाम जुम्हाई का हाला,
स्वागत के ही साथ विदा की होती देखी तैयारी,
रागिनियाँ बन साकी आई भरकर तारों का प्याला,
मदिरा पीने की अभिलाषा ही बन जाए जब हाला,
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